बोयता को पर्चा
बोयता नामक सेठ बाबा का परम भक्त था वह सर्वसम्पन्न था लेकिन घर का आंगन सूना था । उसने बाबा से मन्नत मांगी थी कि उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति पर वह बाबा को एक बेशकीमती रत्नजड़ित हार भेंट करेगा । बाबा ने उसकी मन्नत पूरी की और उसके घर में
एक नन्हे से बालक ने जन्म लिया । पुत्र प्यार में वह इतना अँधा हो गया कि उसे बाबा से मांगी गयी मन्नत का भी ख्याल न रहा । उसके मन में पाप आ गया कि इतने कीमती हार की भी क्या आवश्यकता हैं और कीमती रत्नजडित हार बाबा को भेंट नहीं किया ।
एक दिन वह जहाज में अपनी यात्रा से वापिस लौट रहा था कि जहाज पानी में हिलोरे खाने लगी, लहरें जहाज के अन्दर तक आने लगी । बोयता बुरी संकट में फंस गया । उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । तभी उसे बाबा को हार न चढाने की भूल का पश्चाताप हुआ और वह बाबा को याद करके बाबा से अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगा और उस संकट से बचने के लिए प्रार्थना करने लगा ।
उसकी प्रार्थना को सुनकर बाबा को उस पर तरस आ गया और बाबा ने अपने परचे से उस तूफ़ान को शांत करवा कर अपने भक्त को संकट से मुक्त करवा दिया ।
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