हाकिम को पर्चा
एक समय हरजी भाटी एक बाग में बैठकर रामदेवजी का सत्संग कर रहे थे । कुछ लोगों ने वहां के तत्कालीन हाकिम हजारीमल से हरजी कि शिकायत की जिसके कारण हाकिम ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि उस पाखंडी पुजारी हरजी को पकड़कर काल कोठारी
में डाल दिया जाए ।
जब हाकिम व सिपाही उस बाग में पहुंचे तब हरजी अपने श्रोताओं के आगे बाबा का सत्संग कर रहे थे । उनके पास ही बाबा का लीला घोड़ा स्थापित था एवं गुग्गल धुप हो रहा था । हाकिम ने क्रोध में कहा "पाखंडी धूर्त ! तू ये कपडे का घोड़ा पुजवाकर जनता को धोखा दे रहा हैं । अगर तेरे इस घोड़े और सत्संग में इतनी ही सच्चाई हैं तो मुझे इसका चमत्कार दिखा । अगर तेरा यह घोड़ा दाना-पानी ले लेगा तो में समझूंगा कि तू सच्चा भक्त हैं अन्यथा तुम्हारी गर्दन कटवा दूंगा ।" इतना कहकर हाकिम ने हरजी को कपडे के घोड़े के साथ काल कोठारी में बंद करवा दिया और उस घोड़े के आगे दाना-पानी रख दिया ।
हरजी अपने प्रभु रामदेव जी को अरदास करने लगे । हरजी की पुकार सुनकर व्याप्य सिद्धि से रामदेव जी ने हाकिम को स्वप्न में कहा - "उठो ! काल कोठारी में जाकर मेरे भक्त हरजी को मुक्त करो अन्यथा तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा ।" इसके साथ ही हाकिम दुस्वप्न से डरकर दो बार पलंग से उछल उछल कर गिर पड़ा वह घबराकर भगवान से क्षमा मांगता हुआ कल कोठारी की तरफ भागा ।
काल कोठरी में जाकर उसने देखा कि घोड़ा दाना-पानी ले रहा हैं और अपनी टापों से पृथ्वी में खड्डे कर रहा हैं । इस चमत्कार को देख हाकिम आश्चर्य करने लगा और हरजी भाटी से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा । उस दिन से वह हाकिम रामदेव जी का भक्त बन गया तथा हरजी भाटी के साथ-साथ रामदेव जी की महिमा का प्रचार करने लगा ।
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