शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

भैरव राक्षस वध


भैरव राक्षस वध

रामदेव जी जब छोटे थे तब पोकरण गाँव के आस-पास भैरव नामक राक्षस का बड़ा आतंक था । कहते हैं वह जहाँ रहता था उसके चौबीस मील तक आस-पास में कोई भी मानव या जानवर नहीं रहते थे । विशालकाय वह राक्षस सारी जनता के लिए एक चिंता का विषय था ।

कई लोग उस राक्षस के कारण अपना घर छोड़कर भाग गये थे ।

पूरी प्रजा के साथ-साथ राजा अजमाल जी खुद भी उस राक्षस से परेशान थे । एक दिन वे अपने महल में उस भैरव राक्षस के आतंक के सम्बन्ध में ही बात कर रहे थे की बालक रामदेव वहां आ गये और उन्होंने वह बात सुन ली । उन्होंने भैरव को मार कर धरती से पाप का भार मिटाने की ठानी ।

अगले दिन सुबह ही वे अपने मित्रों के साथ गेंद खेलने के लिए घर से बाहर गये । खेलते-खेलते वे बालीनाथजी की कुटिया पहुँच गये, जहाँ पर भैरव राक्षस का अक्सर आना जाना था । रामदेव को अपने यहाँ देख बालिनाथजी घबरा गये और भैरव राक्षस से बचने हेतु एक गूदड़ी (कंबल) में छिपने को कहा ।

भैरव राक्षस ने आते ही मनुष्य की गंध को पहचान ली और उस गूदड़ी को खीचने लगा, लेकिन वह गूदड़ी द्रोपदी के चीर की तरह बढती ही जाने ही लगी यह देख भैरव मन में घबराया और वहा से भाग उठा । उस राक्षस के पीछे रामदेवजी भागने लगे और उस राक्षस को पकड़ कर उस पापी का अंत कर दिया तथा एक गुफा में धकेल दिया ।

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