शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

माता मैणादे को पर्चा


माता मैणादे को पर्चा

भादवे की दूज को रामदेवजी ने जब अवतार लिया तब अजमल जी रानी मेंणावती को यह समाचार सुनाने हेतु गये । रानी ने आकर देखा तो पालने में दो बालक, एक तो वीरमदेव जिन्होंने माता मैणादे की गर्भ से जन्म लिया था और एक रामदेव सो रहे थे । यह देख

माता मैणादे मन ही मन चिंता में पड़ गयी । वे इसे प्रभु की लीला को न समझ कर कोई जादू-टोना समझने लगी । उसी समय बालक रामदेव ने रसोईघर में उफन रहे दूध को शांत करवा कर माता मैणादे को अपनी लीला दिखाई और माता का संशय समाप्त हो गया,उन्होंने ख़ुशी से रामदेव को अपनी गोद में ले लिया ।

रूपा दर्जी को पर्चा


रूपा दर्जी को पर्चा

बाबा रामदेव ने बचपन में अपनी माँ मैणादे से घोडा मंगवाने की जिद कर ली थी । बहुत समझाने पर भी बालक रामदेव के न मानने पर आखिर थक हारकर माता ने उनके लिए एक दर्जी (रूपा दर्जी) को एक कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया तथा साथ ही साथ उस दर्जी

को कीमती वस्त्र भी उस घोड़े को बनाने हेतु दिए ।घर जाकर दर्जी के मन में पाप आ गया और उसने उन कीमती वस्त्रों की बजाय कपडे के पूर (चिथड़े) उस घोड़े को बनाने में प्रयुक्त किये और घोडा बना कर माता मैणादे को दे दिया । माता मैणादे ने बालक रामदेव को कपडे का घोडा देते हुए उससे खेलने को कहा, परन्तु अवतारी पुरुष रामदेव को दर्जी की धोखधडी ज्ञात थी । अतःउन्होने दर्जी को सबक सिखाने का निर्णय किया ओर उस घोडे को आकाश मे उड़ाने लगे । यह देख माता मैणादे मन ही मन में घबराने लगी उन्होंने तुरंत उस दर्जी को पकड़कर लाने को कहा । दर्जी को लाकर उससे उस घोड़े के बारे में पूछा तो उसने माता मैणादे व बालक रामदेव से माफ़ी माँगते हुए कहा की उसने ही घोड़े में धोखधड़ी की हैं और आगे से ऐसा न करने का वचन दिया । यह सुनकर रामदेव जी वापस धरती पर उतर आये व उस दर्जी को क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने को कहा ।

भैरव राक्षस वध


भैरव राक्षस वध

रामदेव जी जब छोटे थे तब पोकरण गाँव के आस-पास भैरव नामक राक्षस का बड़ा आतंक था । कहते हैं वह जहाँ रहता था उसके चौबीस मील तक आस-पास में कोई भी मानव या जानवर नहीं रहते थे । विशालकाय वह राक्षस सारी जनता के लिए एक चिंता का विषय था ।

कई लोग उस राक्षस के कारण अपना घर छोड़कर भाग गये थे ।

पूरी प्रजा के साथ-साथ राजा अजमाल जी खुद भी उस राक्षस से परेशान थे । एक दिन वे अपने महल में उस भैरव राक्षस के आतंक के सम्बन्ध में ही बात कर रहे थे की बालक रामदेव वहां आ गये और उन्होंने वह बात सुन ली । उन्होंने भैरव को मार कर धरती से पाप का भार मिटाने की ठानी ।

अगले दिन सुबह ही वे अपने मित्रों के साथ गेंद खेलने के लिए घर से बाहर गये । खेलते-खेलते वे बालीनाथजी की कुटिया पहुँच गये, जहाँ पर भैरव राक्षस का अक्सर आना जाना था । रामदेव को अपने यहाँ देख बालिनाथजी घबरा गये और भैरव राक्षस से बचने हेतु एक गूदड़ी (कंबल) में छिपने को कहा ।

भैरव राक्षस ने आते ही मनुष्य की गंध को पहचान ली और उस गूदड़ी को खीचने लगा, लेकिन वह गूदड़ी द्रोपदी के चीर की तरह बढती ही जाने ही लगी यह देख भैरव मन में घबराया और वहा से भाग उठा । उस राक्षस के पीछे रामदेवजी भागने लगे और उस राक्षस को पकड़ कर उस पापी का अंत कर दिया तथा एक गुफा में धकेल दिया ।

मिश्री को नमक बनाया


मिश्री को नमक बनाया

एक समय की बात है नगर में एक लाखु नामक "बणजारा" जाति का व्यापारी अपनी बैलगाड़ी पर मिश्री बेचने हेतु आया । उसने अपने व्यापार से सम्बंधित तत्कालीन चुंगी कर नहीं चुकाया था । रामदेवजी ने जब उस बणजारे से चुंगी कर न चुकाने का कारण पूछा

तो उसने बात को यह कह कर टाल दिया कि यह तो नमक है, और नमक पर कोई चुंगी कर नहीं लगता और अपना व्यापार करने लगा यह देख कर रामदेव जी ने उस बणजारे को सबक सिखाने हेतु उसकी सारी मिश्री नमक में बदल दी।

थोड़ी देर बाद जब सभी लोग उसको मिश्री के नाम पर नमक देने के कारणरन पीट रहे थे तब उसने रामदेवजी को याद करते हुए माफ़ी मांगी और चुंगी कर चुकाने का वचन दिया ।

रामदेवजी शीघ्र ही वहां पहुंचे और सभी लोगो को शांत करवाते हुए कहा कि इसको अपनी गलती का पश्चाताप है, अतः इसे मैं माफ़ करता हूँ, और फिर से वह सारा नमक मिश्री में बदल गया ।

पाँच पीरों को पर्चा


पाँच पीरों को पर्चा

बाबा रामदेवजी कि प्रसिद्धी न सिर्फ राजस्थान बल्कि सम्पूर्ण विश्व में फैलने लगी । उनको न सिर्फ हिन्दू बल्कि मुसलमान भी ध्याने लगे । यह सुनकर मक्का से पांच पीर रामदेव जी की परीक्षा लेने के लिए रूणिचा आये । उन्होंने रामदेव जी से भेंट की । रामदेवजी ने उन्हें

भोजन का निमंत्रण दिया परन्तु पांचो पीरो ने उस निमंत्रण को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि हम तो अपने कटोरों में ही भोजन करते हैं और वो कटोरे हम मक्का में ही भूल गये हैं ।

तब रामदेव जी मन ही मन मुस्काए और समझ गए कि सभी पीर उनकी परीक्षा लेने के लिए यहाँ आये है । रामदेवजी ने अपने हाथ ज्योंही पसारे उन पांचो पीरो के आगे उन्ही के कटोरे हाजिर हो गये ।तब पीर बोले हम तो पीर है ओर आप तो पीरो के पीर रामसापीर हो ।तब फिर से रामदेवजी ने भोजन ग्रहण करने का निवेदन किया ।ओर पीरो ने भोजन किया

बोयता को पर्चा


बोयता को पर्चा

बोयता नामक सेठ बाबा का परम भक्त था वह सर्वसम्पन्न था लेकिन घर का आंगन सूना था । उसने बाबा से मन्नत मांगी थी कि उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति पर वह बाबा को एक बेशकीमती रत्नजड़ित हार भेंट करेगा । बाबा ने उसकी मन्नत पूरी की और उसके घर में

एक नन्हे से बालक ने जन्म लिया । पुत्र प्यार में वह इतना अँधा हो गया कि उसे बाबा से मांगी गयी मन्नत का भी ख्याल न रहा । उसके मन में पाप आ गया कि इतने कीमती हार की भी क्या आवश्यकता हैं और कीमती रत्नजडित हार बाबा को भेंट नहीं किया ।

एक दिन वह जहाज में अपनी यात्रा से वापिस लौट रहा था कि जहाज पानी में हिलोरे खाने लगी, लहरें जहाज के अन्दर तक आने लगी । बोयता बुरी संकट में फंस गया । उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । तभी उसे बाबा को हार न चढाने की भूल का पश्चाताप हुआ और वह बाबा को याद करके बाबा से अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगा और उस संकट से बचने के लिए प्रार्थना करने लगा ।

उसकी प्रार्थना को सुनकर बाबा को उस पर तरस आ गया और बाबा ने अपने परचे से उस तूफ़ान को शांत करवा कर अपने भक्त को संकट से मुक्त करवा दिया ।

खाती को पुनर्जीवित किया


खाती को पुनर्जीवित किया

रामदेवजी का सारथीया नामक एक बाल सहचर (मित्र) था । एक दिन सवेरे खेल के समय खाती पुत्र सारथीया को अपने सखाओं के बीच नहीं देख कर रामदेवजी दौड़े हुए अपने मित्र के घर पहुंचे तथा उसकी माँ से सारथीया के बारे में पूछा तो सारथीया की माँ बिलखती हुई

कहने लगी की सारथीया अब इस संसार में नहीं रहा । वह अब केवल स्वप्न में ही मिल सकेगा । रामदेवजी सारथीया की मृत देह के पास पहुंचकर उसकी बाह पकड़ कर उठाते हुए बोले कि "हे सखा ! तूं क्यों रूठ गया ? तुम्हें मेरी सौगंध है, तू अभी उठ कर मेरे साथ खेलने को चल ।" रामदेवजी की कृपा से सारथीया उठ कर उनके साथ खेलने को चल पड़ा ।

वहां पर सभी लोग यह देख कर रामदेवजी की जय-जयकार करने लगे ।

जाम्भो जी को पर्चा


जाम्भो जी को पर्चा

जाम्भोजी को पर्चा
एक जनश्रुति के अनुसार जम्भेश्वर महाराज ( जाम्भोजी ) ने "जम्भलाव" नामक तालाब खुदवा कर वहां पर रामदेवजी को निमंत्रित किया । रामदेवजी ने अपने चमत्कार से "जम्भलाव" नामक तालाब का पानी कड़वा (खारा) कर दिया जो कि आज तक कड़वा है ।

तत्पश्चात रुणिचा आकर रामदेवजी ने "रामसरोवर" तालाब खुदवाया और जम्भेश्वर महाराज को रुणिचा में रामसरोवर तालाब पर निमंत्रित किया । जम्भेश्वर ने अपने चमत्कार से रामसरोवर तालाब में बालू रेत उत्पन्न कर दी और श्राप दिया कि इस तालाब में छः (6) महिने से अधिक पानी नहीं रहे

पूंगलगढ के पड़िहारो को पर्चा


पूंगलगढ़ के पड़िहारों को पर्चा

रामदेव जी की बहिन सुगना का विवाह पूंगलगढ़ के कुंवर उदयसिंह पड़िहार के साथ हुआ था। इन पड़िहारों को जब ज्ञात हुआ कि रामदेव जी शुद्र लोगों के साथ बैठ कर हरी कीर्तन किया करते हैं तो इन्होने रामदेव जी के यहाँ अपना आना जाना बंद कर दिया तथा

उन्हें हेय दृष्टि से देखने लगे ।

रामदेव जी ने अपने विवाह के उत्सव पर रत्ना राइका को पूंगलगढ़ भेज कर सुगना को बुलाया, तब सुगना के ससुराल वालों ने सुगना को भेजने की बजाय रत्ना राइका को कैद कर लिया । सुगना को इस घटना से बहुत दुःख हुआ और वह अपने महल में बैठी-बैठी विलाप करने लगी ।

रामदेवजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से सुगना का दुःख जान लिया और पुंगलगढ़ की और जाने की तैयारी करने लगे । पूंगलगढ़ पहुँचने पर पड़िहारों के महल के आगे स्थित एक उजड़ स्थान पर आसन लगा कर बैठ गये । देखते ही देखते वह स्थान एक हरे-भरे बाग़ में तब्दील हो गया । कुंवर उदयसिंह ने जादू टोना समझकर सिपाहियों से तोप में गोले भर कर दागने को कहा । सिपाहियों ने ज्योंही गोले दागे वे गोले रामदेवजी पर फूल बनकर बरसने लगे । यह देखकर कुंवर उदयसिंह रामदेवजी के चरणों में जाकर गिर गया और अपने किए पर पश्चाताप करने लगा । रामदेवजी ने उन्हें अपने गले लगाकर माफ़ किया और अपनी बहिन सुगना एवं दास रत्ना राईका के साथ विदा ली ।

सालियों को पर्चा


सालियों को पर्चा

रामदेव जी जब बारात लेकर अमरकोट (अभी पाकिस्तान में स्थित) पहुंचे तब उनका वहां पर बहुत आदर सत्कार के साथ स्वागत हुआ । सभी बाराती बारात स्थल पर ठहरे । रामदेव जी अपने निश्चित स्थान पर विश्राम कर रहे थे तभी रामदेव जी की कुछ सालियाँ मजाक

करने के लिए एक थाल में मरी हुई बिल्ली ढक कर ले आई और रामदेव जी के आगे फलों का थाल कह कर रख दी और एक तरफ खड़ी हो गयी ।

रामदेवजी अपनी अलौकिक शक्ति से उस कपडे से ढके थाल का राज़ जान गये । उन्होंने ज्योंही उस कपडे को हटाया वह मरी हुई बिल्ली जीवित होकर वहां से भाग गयी । यह देख कर वहां खड़ी रामदेवजी की सभी सालियाँ दंग रह गयी । वे समझ गयी कि यह रामदेव जी का ही चमत्कार है और वे रामदेव जी के आगे नतमस्तक हो गयी ।

नेतलदे को स्वस्थ किया


नेतलदे को स्वस्थ किया

नेतलदे का विवाह रामदेव जी के साथ हुआ था । यह अमरकोट के राजा दलजी सोढा की पुत्री थी । लोक मान्यता के अनुसार यह रुक्मणी का अवतार कही जाती हैं । कहते हैं कि पक्षाघात के कारण नेतलदे पंगु हो गयी थी, किन्तु पाणिग्रहण संस्कार होते ही, रामदेव जी की अलौकिक शक्ति से उनकी पंगुता दूर हो गयी । रामदेव जी कहने पर वे जब फेरों के लिए उठने का प्रयास करने लगी तो सहसा ही उनमे उठने की शक्ति आ गयी और उन्होंने उठकर रामदेव जी के साथ फेरे लिए, यह देख लोगों के हर्ष का पार नहीं रहा, सभी लोग रामदेव जी का जयघोष करने लगे ।

भाणु को जीवित जीवित किया


भाणु को जीवित करना, पर्चा

जिस रात अमरकोट में रामदेव जी का विवाह हुआ, उसी रात को सुगना बाई के पुत्र की सांप के काटने से मृत्यु हो गयी । अन्तर्यामी भगवान रामदेव जी ने सुगना के दुःख को जान लिया और नेतलदे रानी एवं बारात सहित प्रातः से पूर्व वापिस पहुँच गये । विवाह के मांगलिक

अवसर पर विघ्न न डालने के लिए सुगना बाई ने अपने मरे पुत्र के बारे में किसी को भी नहीं बताया । रामदेव जी व पानी नेतलदे को बढाने के लिए जब सुगना नहीं आई तो रामदेव जी ने सुगना को बुलाया और उसकी उदासी का कारण पूछा तो कुछ देर तक सुगना मौन रही फिर उसने कृत्रिम प्रसन्नता लाने का प्रयास किया, किन्तु अश्रुधारा प्रवाहित हो गयी वह कुछ न बोल सकी, उसका कंठ रुंध गया सिसकती हुई पुत्र को पुकारने लगी ।

रामदेव जी बधावे से पूर्व ही अन्दर गये और अपनी दैवीय शक्ति से परिपूर्ण हाथ से मृत बालक को स्पर्श किया और अपने भांजे को आवाज देकर उठाने लगे । रामदेवजी के आवाज देते ही वह बालक पुनर्जीवित हो गया । रामदेव जी ने उसे अपनी गोदी में बिठा उसे खेलाने लगे, यह देख बहिन सुगना के चेहरे पर ख़ुशी कि लहर दौड़ गयी और अपने भाई रामदेव को धन्यवाद देते हुए अपने पुत्र को अपने सीने से लगा लिया ।

मेवाड़ के सेठ दलाजी को पर्चा


मेवाड़ के सेठ दलाजी को पर्चा

कहा जाता हैं कि मेवाड़ के किसी ग्राम में दलाजी नाम का एक महाजन रहता था । धन सम्पति की उसके पास कोई कमी नहीं थी किन्तु संतान के अभाव में वह दिन रात चिंतित रहता था । किसी साधू के कहने पर वह रामदेव जी की पूजा करने लगा उसने

अपनी मनौती बोली की यदि मुझे पुत्र प्राप्ति हो जाए तो सामर्थ्यानुसार एक मंदिर बनवाऊंगा ।

इस मनौती के नौ माह पश्चात उसकी पत्नी के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ । वह बालक जब 5 वर्ष का हो गया तो सेठ और सेठानी उसे साथ लेकर कुछ धन सम्पति लेकर रुणिचा के लिए रवाना हो गये । मार्ग में एक लुटेरे ने उनका पीछा कर लिया और यह कह कर उनके साथ हो गया कि उसे भी रुणिचा जाना हैं । थोड़ी देर चलते ही रात हो गयी और अवसर पाकर लुटेरे ने अपना वास्तविक स्वरुप दिखा ही दिया उसने सेठ से उंट को बैठाने के लिए कहा और कटार दिखा कर सेठ की समस्त धन सम्पति हड़प ली तथा जाते-जाते सेठ की गर्दन भी काट गया । रात्री में उस निर्जन वन में अपने बच्चे को साथ लिए सेठानी करूण विलाप करती हुई रामदेव जी को पुकारने लगी । अबला की पुकार सुनकर दुष्टों के संहारक और भक्तों के उद्धारक भगवान, रामदेव जी अपने लीले घोड़े पर सवार होकर तत्काल वहां आ पहुंचे । आते ही रामदेव जी ने उस अबला से अपने पति का कटा हुआ सर गर्दन से जोड़ने को कहा सेठानी ने जब ऐसा किया तो सर जुड़ गया तत्क्षण दला जी जीवित हो गया । बाबा का यह चमत्कार देख दोनों सेठ सेठानी बाबा के चरणों में गिर पड़े । बाबा उनको सदा सुखमय जीवन का आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गये । उसी स्थल पर दलाजी ने बाबा का एक भव्य मंदिर बनवाया ।

डाली बाई को पर्चा


डाली बाई को पर्चा

बाबा ने समाधी के वक्त अपने सभी ग्रामीणों को यह समाचार दिए कि अब मेरे जाने का वक्त आ गया हैं, आप सभी को मेरा राम राम । बाबा ने जाते-जाते अपने ग्रामीणों को कहा कि इस युग में न तो कोई ऊँचा हैं, और न ही कोई नीचा, सभी जन एक समान हैं, और सभी

को सहर्ष स्वीकार करते हुए कहा कि- "हे जन ईश्वर के प्रतीक हैं अतः उन्हें एक समान ही समझना और उनमे किसी भी प्रकार का भेद न करना । बाबा को रोकने के सभी प्रयास विफल होने पर सभी ग्रामीणों ने डाली बाई को इस दुःखद समाचार के बारे में जाकर बताया कि वे ही कुछ करे । डाली बाई समाचार सुनकर शीघ्र ही नंगे पाँव रामसरोवर की तरफ चली आई । डाली बाई ने आते ही रामदेव जी से कहा कि "हे प्रभु ! आप गलत समाधी को अपना बता रहे हो । ये समाधी तो मेरी हैं ।" रामदेव जी ने पूछा "बहिन, तुम कैसे कह सकती हो कि यह समाधी तुम्हारी हैं?" इस पर डाली बाई ने कहा कि अगर इस जगह को खोदने पर "आटी, डोरा एवं कांग्सी" निकलेगी तो यह समाधी मेरी होगी । ग्रामीणों द्वारा समाधी को खोदने पर वे ही वस्तुएं जो कि डाली बाई ने बताई थी उस समाधी से प्राप्त हुई तो रामदेव जी को ज्ञात हुआ कि सत्य ही यह समाधी तो डाली बाई की हैं । डाली बाई ने अपनी सत्यता दर्शाकर प्रभु से कहा कि "हे प्रभु ! अभी तो आपको इस सृष्टि में कई कार्य करने हैं, और आप हमसे विदा ले रहे हो?"

रामदेव जी ने अपनी मुंहबोली बहिन डालीबाई को अपने इस सृष्टि में आने का कारण बताते हुए कहा कि "मेरा अब इस सृष्टि में कोई कार्य बाकी नहीं रहा हैं, में भले ही दैहिक रूप से इस सृष्टि को छोड़कर जा रहा हूँ, परन्तु मेरे भक्त के एक बुलावे पर में उसकी सहायता के लिए हर वक्त हाजिर रहूँगा ।"

रामदेव जी और कहने लगे कि "हे डाली ! मैं तुम्हारी प्रभु भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ हूँ और आज के बाद तुम्हारी जाति के सभी जन मेरे भजन गायेंगे और रिखिया कहलायेंगे." इतना कह कर रामदेव जी ने डालीबाई को विष्णुरूप के दर्शन दिए, जिसे देख डाली बाई धन्य हो गयी, और रामदेव जी से पहले ही समाधी में लीन हो गयी

हरजी भाटी को पर्चा


हरजी भाटी को पर्चा

रामदेवरा से कुछ ही मील दूर एक स्थान पर उगमसी भाटी नामक एक क्षत्रिय भेड़-बकरियां चरा कर जीवन यापन करते थे । वे रामदेव जी के परम भक्त थे और नित्य ही रामदेव जी का कीर्तन करते थे । बाबा की कृपा से उनको पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, उसका नाम हरजी

रखा। हरजी जब 15 साल के थे तब वे एक दिन जंगल में भेड़ बकरियां चरा रहे थे । तभी वहां पर रामदेव जी साधू वेश धारण करके पधारे उन्होंने हरजी से भूख मिटाने के लिए बकरी का दूध माँगा । हरजी ने कहा " महाराज ! मेरी बकरी तो अभी ब्याही नहीं हैं और बिन ब्याही बकरी के थनों से दूध कैसे आएगा? आप का सत्कार न करने से में बड़े संकट में पड़ गया हूँ ।"

साधू ने कहा "भक्त ! इस गर्मी में तपती रेत पर चलकर में बड़ी दूर से आया हूँ । मुझे तो तुम्हारी समस्त बकरियों के थनों में दूध दिख रहा हैं, परन्तु तुम मना कर रहे हो । लो यह कटोरा, इसमें दूध निकाल लाओ ।"

योगी से डरता हुआ कि कहीं यह शाप न दे दे हरजी कटोरा लेकर एक बकरी के पास आकर उसको दुहने लगा । देखते ही देखते वह कटोरा बकरी के दूध से भर गया । यह देख हरजी को बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने उस साधू को वह कटोरा देकर कहा " हे महाराज ! आप कौन हैं? में अज्ञानी आपको पहचानने में गलती कर रहा हूँ ।" तभी रामदेव जी ने हरजी को अपने असली रूप में दर्शन दिए और हरजी को आशीर्वाद देते हुए अंतर्ध्यान हो गये । उसी दिन से हरजी भाटी प्रभु की भक्ति में लग गया और आगे चलकर बाबा के सेवक के रूप में जाना गया ।निकाल लाओ ।

हाकिम को पर्चा


हाकिम को पर्चा

एक समय हरजी भाटी एक बाग में बैठकर रामदेवजी का सत्संग कर रहे थे । कुछ लोगों ने वहां के तत्कालीन हाकिम हजारीमल से हरजी कि शिकायत की जिसके कारण हाकिम ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि उस पाखंडी पुजारी हरजी को पकड़कर काल कोठारी

में डाल दिया जाए ।

जब हाकिम व सिपाही उस बाग में पहुंचे तब हरजी अपने श्रोताओं के आगे बाबा का सत्संग कर रहे थे । उनके पास ही बाबा का लीला घोड़ा स्थापित था एवं गुग्गल धुप हो रहा था । हाकिम ने क्रोध में कहा "पाखंडी धूर्त ! तू ये कपडे का घोड़ा पुजवाकर जनता को धोखा दे रहा हैं । अगर तेरे इस घोड़े और सत्संग में इतनी ही सच्चाई हैं तो मुझे इसका चमत्कार दिखा । अगर तेरा यह घोड़ा दाना-पानी ले लेगा तो में समझूंगा कि तू सच्चा भक्त हैं अन्यथा तुम्हारी गर्दन कटवा दूंगा ।" इतना कहकर हाकिम ने हरजी को कपडे के घोड़े के साथ काल कोठारी में बंद करवा दिया और उस घोड़े के आगे दाना-पानी रख दिया ।

हरजी अपने प्रभु रामदेव जी को अरदास करने लगे । हरजी की पुकार सुनकर व्याप्य सिद्धि से रामदेव जी ने हाकिम को स्वप्न में कहा - "उठो ! काल कोठारी में जाकर मेरे भक्त हरजी को मुक्त करो अन्यथा तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा ।" इसके साथ ही हाकिम दुस्वप्न से डरकर दो बार पलंग से उछल उछल कर गिर पड़ा वह घबराकर भगवान से क्षमा मांगता हुआ कल कोठारी की तरफ भागा ।

काल कोठरी में जाकर उसने देखा कि घोड़ा दाना-पानी ले रहा हैं और अपनी टापों से पृथ्वी में खड्डे कर रहा हैं । इस चमत्कार को देख हाकिम आश्चर्य करने लगा और हरजी भाटी से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा । उस दिन से वह हाकिम रामदेव जी का भक्त बन गया तथा हरजी भाटी के साथ-साथ रामदेव जी की महिमा का प्रचार करने लगा ।

हडबुजी को पर्चा


💫हडबू जी को पर्चा💫

हडबू जी सांखला रामदेव जी के मौसी के बेटे भाई थे । जब उन्होंने रामदेव जी के जीवित समाधी लेने का समाचार सुना तो वे शीघ्र ही अपने घोड़े पर सवार होकर रूणीचा की तरफ निकल पड़े । थोड़ी दूर तक जाने के बाद उन्हें एक पेड़ के नीचे रामदेव जी दिखाई दिए यह

देख हडबू जी की ख़ुशी का पार नहीं रहा और वे वहीँ उतर कर रामदेव जी के गले लग गये । हडबू जी ने जब रामदेव जी को जब जीवित समाधी की अफवाह के बारे में पूछा तब रामदेव जी ने उन्हें यह कहते हुए उत्तर दिया कि इस संसार में जितने मुंह उतनी बाते हैं, हम यह नहीं कह सकते कि कौन सत्य हैं और कौन मिथ्या । इतना कहकर रामदेव जी ने हडबू जी को रतन कटोरा और सोहन चुटिया अजमाल जी को देने के लिए कहा और कहा कि वे स्वयं घोड़ा ढूंढकर आ रहे हैं ।

हडबू जी जब रामदेव जी की दी हुई वस्तुएं लेकर रूणीचा पहुंचे तब वहां पर सभी गाँव वालों को मायूस पाया । हडबू जी ने इसका कारण पूछा तो उन गाँव वालों ने बताया कि रामदेव जी ने जीवित समाधी ले ली हैं । हडबू जी ने उन गाँव वालों की बात को काटकर उन्हें रतन कटोरा व सोहन चुटिया दिखाया जो कि रामदेव जी ने उन्हें दिया था, परन्तु गाँव वालों ने कहा कि ये रतन कटोरा व सोहन चुटिया तो रामदेव जी की जीवित समाधी के साथ ही दफना दिए थे । उसी समय तुंवरों को रामदेव जी के समाधी लेने पर भ्रम हो गया और वे इसकी वास्तविकता जानने के लिए समाधी को खोदने लगे । समाधी खोदते समय आकाशवाणी हुई और रामदेव जी बोले की आपने मेरे मना करने के बावजूद भी मेरी समाधी खोदकर मेरे विश्वास को खंडित किया हैं । इसलिए आज से आपकी आने वाली पीढ़ियों में कोई पीर नहीं होगा ।